आइए मानसून का स्वागत करें🌧
मेघ
शुष्क अचला तृषित विहग,
नभ के मस्तक पर झांक रहे।
सृष्टि का कण कण बन विरही,
अब वारिधर को ताक रहे।
हे सघन विशाल श्वेत शिखर,
निर्दुग्ध खलक पाए तेरा अमृत।
मिटाकर अंतर्मन की रूक्षता को,
कर दो रोम रोम अब संतृप्त।
शुष्क पड़ गए नद पोखर,
हुए बीज मृत है भूमि की कोख सूनी।
हे मेघराज आओ लेकर फुहार,
चमका दो जीवनदायिनी दामिनी।
चुन चुन कर तुम तुषारकण,
बांध लाओ अपने आंचल संग।
बुझाकर उष्णता की ताप,
मिटा दो आक्रांत क्रंदन।
जल थल वासी कुंठित विकल हैं,
पीयूष सुधा बरसाओ तुम।
अनन्त से क्षिति तक गरज कर,
सृष्टि संवर्धन कर जाओ तुम।
कर तृप्त प्यासी वसुंधरा को,
मृत मृत्तिका में अब डालो प्रान।
करके उर्वी का आलिंगन,
वन उपवन को दे दो अभयदान।
हे नील गगन के छत्रपति,
बरखा से धरा को मिला दो।
कर स्पर्श अग्नि तप्त रतनगर्भा का,
तुम जग का संताप मिटा दो।
✍डा.शुभ्रा वार्ष्णेय
बहुत बढ़िया 👌👌
उम्दा ✨🙏🏻