धरती मां को बचाएं
कल-कल बहती नदियां प्रेम का संदेश लाएं।
धरा पर फैली हरियाली राग मल्हार सुनाएं।
सरसराहट करती हवाएं मीठी खुशबू फैलाएं।
जीवन के सारे पहलू प्रकृति की गोद में समाएं।
प्रकृति का सानिध्य मन में संवेदना जगाए।
वटवृक्ष की शीतल छाया भाव मातृत्व का लाए।
वृक्ष की फलित लताएं परोपकार का रंग उड़ाए।
जीवन के अनगिनत सुख प्रकृति की बाहों में पाएं।
रूप अद्भुत प्रकृति का चित में आनंद लाएं।
कभी रहे धरा रिक्त कभी हरियाली ओढ़ जाए।
कभी रहती शांत मौन कभी तांडव रूप दिखाएं।
कर संरक्षण प्रकृति का हम धरती मां को बचाएं।
✍️डा.शुभ्रा वार्ष्णेय
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