इमोशनल अत्याचार
अम्मा जी सुबह से ही बहुत गुस्से में थीं।
सुबह की व्यस्त दिनचर्या जहां पर बच्चों को अपने स्कूल और राजीव को ऑफिस जाने की जल्दी थी वहां रजनी का अम्मा जी के आगे पीछे घूमना किसी को अच्छा नहीं लग रहा था।
“तुम उन्हें छोड़ क्यों नहीं देती इस समय …अपने काम पर ध्यान दो… नहीं तो हम सब लोगों को देर हो जाएगी।” राजीव ने थोड़ा जोर से अम्माजी को सुनाते हुए रजनी को आवाज दी।
अम्मा जी… राजीव की दादी जो प्रभु की कृपा से राजीव के माता-पिता के देहांत के बाद भी आज भी स्वस्थ थी और सदैव की भांति अपना दबदबा बनाकर परिवार के बीच रह रहीं थीं।
हर बुजुर्ग की तरह उनकी भी यही ख्वाहिश थी कि घर के ध्यान आकर्षण का केंद्र व ही बनी रहे हर फैसला उन से होकर गुजरे और इसके लिए वह हर तरीके अपनाती.. चाहे फिर भावनात्मक प्रहार ही क्यों ना हो।
राजीव तो राजीव रजनी भी उन्हें उचित मान-सम्मान देने से पीछे नहीं हटती थी।
राजीव की पूरी कोशिश होती कि अम्मा जी कभी भी अपने पुत्र यानी कि उसके पिता की कमी महसूस ना करें और वह हर सुविधा को अपनी दादी को देने में कसर नहीं छोड़ता था। बच्चे भी अपनी बड़ी अम्मा को आदर और प्यार देने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे लेकिन कई बार उनकी आदतें और हठधर्मिता परिवार में तनाव का माहौल बना देती।
लॉबी में अपनी बनी परमानेंट बिस्तर पर बैठी बैठी ही वह सब की दिनचर्या देखती रहती और बोलती रहती।
आज भी कुछ ऐसा ही दिन था जब रजनी सुबह बच्चों का और राजीव का टिफिन पैक करने में व्यस्त थी तब अम्मा जी ने पूरे तीन बार रजनी से चाय बनवा ली थी और हर बार चाय में नुक्स निकाल रही थी।
राजीव का कहना ही था की अम्मा जी भड़क उठी,” हां बहू जाओ बच्चों और अपनी पति की सुनो… मेरा क्या है मैं तो दिन दो दिन की मेहमान हूं… अरे भगवान मुझे तो सही सी चाय भी नसीब नहीं है सुबह-सुबह…।”
अम्मा जी की शिकायत भरी आवाज अब रुदन में बदलती चली जा रही थी जिसको सुनकर दोनों बच्चे भी खीज उठे थे।
स्कूल बस आने वाली थी और सब्जी बन नहीं पाई थी रजनी ने अचार से दोनों का टिफिन तैयार कर उन दोनों को विदा किया।
बच्चों के जाने के बाद भी दादी का प्रलाप जारी था, “अरे भगवान तुम तो मुझे उठा ही लो…. अब यहां पर मुझे कौन देखने वाला है।”
अब तक उनकी बातों को अनसुना कर अपना काम कर रहा राजीव अपना संयम खो बैठा था।
” हां हां दादी ….सही कह रही हो… और जिस तरह से तुम दिनभर एक ही जगह बैठी रहती हो और अपना स्वास्थ्य खराब कर रही हो ना चल फिर कर…तो भगवान जी भी तुम्हें बुलाने में देर नहीं करेंगे।”
रजनी के रोकते रोकते भी राजीव ने दो तीन बातें सुना ही दी थी ।
झल्ला कर राजीव नहाने चला गया और रजनी वापस सब्जी बनाने में लग गई।
15 मिनट बाद जब दोनों अपने-अपने काम से निबटकर लॉबी में आए तोअम्मा जी बिस्तर से नदारद थीं।
राजीव और रजनी ने तेजी से घर से बाहर निकल कर देखा तो तो अम्मा जी बाहर लॉन में लंबे-लंबे डग भरती टहल रही थीं।
उनको टहलते देख एक मीठी मुस्कान राजीव और रजनी के होठों पर फैल गई।
आज अपने इमोशनल अत्याचार में अम्मा जी खुद फंस गई थी।
✍ डा.शुभ्रा वार्ष्णेय
Very nice 👌👌😊