सरपट दौड़ती थी जिंदगी, थम सी गई
रफ़्ता-रफ़्ता पिघलती थी, जम सी गई
शहरों में पसरा सन्नाटा, वीरान हैं सड़कें
घर-आँगनों में रौनकें, दिखती हैं नई
क्या ख़ूब करवटें, वक़्त ने बदली हैं
हम सबकी पेशानी पर, सिलवटें दी हैं
गुज़र जाएगा ये दौर, हिम्मत तो रख
हरहाल खुश रहने की, आदतें अच्छी हैं
स्वरचित
©
दीपाली पंत तिवारी ‘दिशा’
Great post 👍👍👌👌
बहुत खूब, सुंदर सामयिक रचना
काफ़ी सुंदर ❤